सामान सारे आज भी पड़े हैं
ठीक उसी जगह
जहाँ वो ढाई साल पहले पड़े थे.
बस उनके इस्तेमाल होने का
तरीका है बदल गया.
कम हो गए हैं बर्तन रसोई में;
और कुकर है कि
ना जाने कितने दिनों से एक कोने में
गुमसुम पड़ा है.
कोई अब नहीं जाता
सुबह सवेरे उठकर बाड़ी में
यह देखने को
कि कितने निम्बू हैं पके हुए
निम्बू के पेड़ में.
या फिर कि वह छोटा पौधा पपीते का
जिसे देखा था कल
एकदम नया-नन्हा सा
वो आज भी ज़िंदा है क्या?
सूख गयी है तुलसी भी तुम्हारी अब तो
तुम्हारी याद में.
क्या तुम्हें अंदाज़ है जरा भी
कि तुम्हारे जाने से
लावारिस हो गया है एक पूरा संसार?
माँ -
क्या तुम्हें नहीं लगता कि
तुम्हारा इस कदर
गैर वक़्त चले जाना
नाजायज़ था?
वापस -
क्यों नहीं आ जाती तुम?
5 comments:
Very touching. I remember Aunty when she came to Mumbai.
Thanks Neelabh .. I remember you were the first guy I met in Vidayapith ka interview round .. tera mathematical table maa ne tere parents se maanga tha aur maine usi se tables revise kiye the :-)
Respect
Very touching, Neel.
धन्यवाद् योगेश शर्मा जी. मैं भी आपके ब्लॉग पर गया था. काफी अच्छी कवितायें हैं आपकी.
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